Poem 1.7

महफ़िल

महफ़िल उठ चुकी है -

अब नहीं रहा कोई तमाशा दिखाने को;

अदाकार सो गए गहरी नींद में -

कुछ ख्वाबों को अधूरा छोड़कर कुछ नए ख़्वाब देखने को।

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